देहरादून के कुम्हार दिवाली के लिए मिट्टी के दीयों की मांग पूरी नहीं कर पा रहे हैं, ये है कारण.
देहरादून: दीपावली पर्व की तैयारियां जोरों शोरों से चल रही है. इसी क्रम में कुम्हार मंडी में इन दोनों दीये (दीपक) बनाए जा रहे हैं. दीये और मूर्ति बनाने वाले कलाकार दीपावली से करीब 6 महीने पहले से ही अपनी तैयारियां शुरू कर देते हैं. इस बार भी रंग बिरंगे दीपक बनाए जा रहे हैं, ताकि लोगों को काफी अधिक पसंद आए. हालांकि, हर साल की तरह ही इस साल भी भारत सरकार और राज्य सरकार स्वदेशी उत्पादों के अत्यधिक इस्तेमाल पर जोर दे रही है. ऐसे में इस साल स्वदेशी उत्पादों के अभियान का कितना दिख रहा है असर? आइए जानते हैं.
दीपावली के पावन पर्व की तैयारी शुरू हो चुकी है. दीपावली के पर्व को हर्षोल्लास से मनाने के लिए जहां एक ओर बाजार की रौनक बढ़ने लगी है. वहीं, दूसरी ओर घर को रोशन करने वाले दीयों की डिमांड भी बढ़ने लगी है. राजधानी देहरादून के चकराता रोड स्थित कुम्हार मंडी में इन दिनों मिट्टी दीये बनाने के साथ ही लक्ष्मी-गणेश की मूर्ति बनाने और कर्वा बनाने का काम किया जा रहा है. दीपावली की पूजा के लिए दीये और लक्ष्मी-गणेश की मूर्ति की ग्राहकों ने खरीदारी भी शुरू कर दी है.
मिट्टी की इस कला से जुड़े कुम्हार का मानना है कि मिट्टी के आइटम तैयार करने के लिए कुछ चुनिंदा स्थानों से ही मिट्टी उपलब्ध हो पा रही है. हालांकि, मिट्टी की उपलब्धता कुछ कुम्हारों के लिए एक बड़ी चुनौती भी बनने लगी है. यही वजह है कि कुम्हार मंडी के लोग पिछले कई सालों से स्थानीय जनप्रतिनिधियों समेत सरकार से भी अनुरोध करते रहे हैं कि उन्हें प्रयाप्त मात्र में मिट्टी उपलब्ध हो सके. क्योंकि साल दर साल कुम्हारों की ओर से बनाई जा रही मिट्टी के दीये की डिमांड लगातार बढ़ती जा रही है, जिसके चलते कुम्हार दीपावली पर्व पर दीये की खपत को पूरी नहीं कर पा रहे हैं. यही वजह है कि उन्हें अन्य राज्यों गुजरात, कोलकाता, दिल्ली और मुंबई से भी दीये मंगवाने पड़ रहे हैं.
ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए कुम्हार मंडी के कुम्हारों ने बताया कि इस मॉनसून सीजन के दौरान अत्यधिक भारी बारिश होने के कारण कुम्हार पर्याप्त मात्रा में दीये नहीं बना पाए हैं. वर्तमान समय में मिट्टी से बने उत्पादों की डिमांड काफी अधिक है, जबकि उनके पास इतना माल नहीं है कि वो लोगों की डिमांड पूरी नहीं कर सकें. कुछ कुम्हारों का कहना है कि उन्होंने जो दीये बनाए थे वो सभी दीये थोक में बिक चुके हैं. ऐसे में अब अन्य राज्यों से मंगाए गए फैंसी दीये और मूर्तियां बेच रहे हैं. कुछ दुकानदारों का कहना है कि अभी से ही लोगों ने दीपावली की खरीदारी शुरू कर दी है. लोगों को स्थानीय स्तर पर बने दीये और मूर्तियां ज्यादा पसंद आ रही हैं और वो वही खरीद रहे हैं.
कुम्हार मंडी के कुम्हार: मिट्टी की वस्तुएं तैयार करने के लिए कुछ कुम्हार एक साल पहले जबकि कुछ कुम्हार 6 महीने पहले से ही तैयारी में जुट जाते हैं. हालांकि, मॉनसून सीजन के दौरान बदले मौसम के मिजाज ने कुम्हारों की इस कला को निखारने में एक बड़ी चुनौती बनने का काम किया है. बावजूद इसके दीपावली से ठीक पहले इन दिनों मिट्टी से निर्मित दीपक और लक्ष्मी गणेश की मूर्तियों और कर्वे की काफी डिमांड बढ़ गई है. कुछ कुम्हार तो उपभोक्ताओं की डिमांड को पूरी भी नहीं कर पा रहे हैं, जबकि कुछ कुमार बढ़ती डिमांड से खासे उत्साहित भी नजर आ रहे हैं.
कुम्हार मंडी के कुम्हार: कुम्हार मंडी में खरीदारी करने वाले लोग भी मिट्टी की शुद्धता को बहुत महत्वपूर्ण मान रहे हैं. लिहाजा ऐसे में सीधे कुम्हार से दीपक व मिट्टी के बर्तन और लक्ष्मी-गणेश की मूर्ति को खरीदना काफी मुफीद मानते हैं. कुछ उपभोक्ताओं का मानना है कि मिट्टी के दीये और मिट्टी की लक्ष्मी गणेश की मूर्ति का दीपावली के पावन पर पर पूजा करना संस्कृति से भी जुड़ा हुआ है.

